Friday 9 December 2011

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कोरे कागज़ पे रंग भरने कि ख्वाइश थी
यारों कि यारी ने लिखना सिखा दिया

लिखो जो दिल कहे
लिखो वोह जो जुबान ना कह सके
लिखो उस कलम से जो रूमानियत बिखेरे
लिखो उससे तुम साँझ सवेरे
लिखो उससे जो दूर करे तुम्हारे अँधेरे

यार का नाम लिखते ही,
सियाही का रंग बदल जाता है I
आलम ये है की,
कोरे कागज़ में भी अब मुझे तेरा नाम नज़र आता है !

मोहब्बत के दिए सितम को,
हमने सरताज बनाया है I
ज़िन्दगी जीने का ये,
एक नया अंदाज़ बनाया है !!

काफ़िर तो हो गया है दिल मेरा,
ज़माने की सुनता ही नहीं I
मानता है वो सिर्फ रस्म -ए-उल्फत को,
जहाँ है यार , बसेरा है इस काफ़िर का भी वहीँ !

दीवानगी की हद को  पार करने लगा है काफ़िर,
चाँद को भी उनका चेहरा समझने लगा है काफ़िर II
लोगों के बीच हम यूँ ही बदनाम हुए जाते है,
हर रात हमें छत पर खींच ले आने लगा है काफ़िर !



सर -ए -आम हमारी उल्फत के चर्चें शुरू हो गए हैं,
गली ,मोहल्ले , बाज़ार में दिल ढूँढता है उन्हें,
वोह न सही हर कदम पर हम -
उनके नाम से रूबरू हो गए हैं !

गुस्ताखियों पे अपने,
इतराते भी हम ही हैं I
महफ़िल में जब नज़र मिलती है उनसे,
शरमाते भी हम ही है!

दीदार -ए -यार से छाया है मुझपे मोहब्बत का सुरूर
हर बढती हुई धड़कन से बढ़ रहा है मेरे आँखों का नूर !

दिल को आसरा मिल जाये , हम जीने का बहाना ढूँढ लेंगे,
खाली जाम को भी हम भरा हुआ पैमाना समझ लेंगे !

अदना सा लब्ज़ -ए -उल्फत उन लम्हों ने फ़रमाया है,
ना जाने क्यूँ हमने उनका फ़साना बनाया है!

ज़मानें की क्या हम करें बातें ?
उनसे ही रोशन है हमारे दिन और हमारी रातें I

क्या हम बयां करें दास्ताँ -ए –उल्फत ?
बस समझ लो ये है खुदा की हम पे रहमत !

हर सांस तेरे नाम से शुरू,
तेरे नाम से ही ख़तम कर लेते हैं I
इश्क -ए -विरासत मुझे मिली है दीवानगी ,
इसे भी हम खुदा का करम समझ लेते है !

अजब असर है दीवानगी -ए -इश्क का ,
आँखे बंद करते हैं दीदार के लिए !

इश्क की बस एक हवा चली,
और दीवानों की कौम बना बैठे !

रहगुज़र खुद से ही चुना था मगर,
खड़े हैं सूखे दरख़्त की तरह II
उम्मीद है की बाहार इधर भी आयेगी .

हार या जीत की हमें फिकर नहीं,
हम उनके दिल में बसे जा रहे हैं बस उन्हे ही खबर नहीं !

उनकी तोह फितरत है आजमाने की,
पर दिल ऐ नादान क्या करे? क्योंकि हमारी भी है आदात मुस्कुराने की.

ह़र ज़ररे में तेरा अक्स ढूँढता ये दिल,
ह़र लम्हा तेरा ख्वाइश से बेक़रार होता है ये दिल,
यकीं है कि तेरे कदम मेरे रास्तों पर नहीं,
फिर भी एक मुंतजिर को मकान देता है ये दिल.

उनके दीदार को हम खुदा का करम समझने लगे थें,
उनके एक मुस्कराहट को मुकाम-ऐ-इश्क समझने लगे थें

अब तेरी गली में आना जाना नहीं होता
अब ज़िन्दगी का कोई भी पल सुहाना नहीं होता
किस्मत ने किया मजबूर तोह जुदा हो गए
पर जुदाई का मतलब तोह भुलाना नहीं होता !



राह है तो रहमत है ,
मेरे पैरों को चलने कि आदात है ,
धुप में भी छाओं ढून्ढ लेंगे ,
आज कुछ कर गुज़र ने कि चाहत है .

आज यह कुछ वक़्त का तकाजा है
दिल के ज़क्म अभी ताज़ा है
आसूं है भिगोये मेरे कागज़ को
लगता है कलम में स्याही कम और दर्द जियादा है

दर्द में मुस्कुराये तोह मज़ा और ही है
उनको याद कर पलकें भिगाए तोह मज़ा और ही है
जुबान पर आई बात तोह सब समझ लेते है
खामोशियों को कोई समझ जाये तोह मज़ा और ही है

घमों का हुजूम मेरी फितरत बदल सकता नहीं
क्यूकि मुस्कुराने को हम अपनी आदत बना लिया करते हैं
जिनको बेरंग कहती है ये दुनिया ,हम तो उन्ही
रंगों में रंग मिला तस्वीर बना दिया करते है

हर सांस तेरे नाम से ही शुरू
तेरे नाम से ही ख़तम कर लेते हैं
इश्क-ऐ-विरासत मुझे मिली है दीवानगी
इसे भी हम खुदा का करम समझ लेते हैं .

मोहब्बत का कोई रस्म ओ राह नहीं है
तेरी ख्वाहिश से आगे मेरी कोई चाह नहीं है
मेरा वजूद है तुम्हारे इश्क का आइना
ये और बात है कि इसका कोई गावाह नहीं है

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