Saturday, 10 December 2011

मुट्ठी में इन्द्रधनुष

बचपन में इन्द्रधनुष देख अक्सर सोचा करती
क्या आसमा में रंग तितलियाँ है भरती?
क्या परिया इस रास्ते आती है ज़मीन पर
कैसे ले चलूँ इससे मैं झूला बना अपने घर
लम्बी छलांगे लगायी 
फिर भी उससे  छू पाई 
एक बार खूब लगा के ध्यान
लगायी सबसे ऊँची छलांग
लगा इस बार तो छू लिया
रंग सारे  मुठी में भर दिया
मुट्ठी भीचे रही कितने ही सावन
डर था गर खोल दी मुठी तो खो जायेंगे सारे रंग मनभावन
फिर एक ऐसा वक्त आया
आँखों के सामने एक सख्श आया
मिली उस से मेरी नज़रें
वोह मन  को बहुत  भाया
खुल गयी मेरी मुट्ठी
रंग सारे मेरे जीवन में भर आया........

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