Friday 9 December 2011

जीना इसी का नाम है !!!

आज हमने सोचा "चलो दिल की सफाई कर आयें"
दरवाज़ा को दिल का खोला
दिल सकुचाया, पर कुछ न बोला ,
अलसाया, जैसे लम्बी रात के बाद ,
आज नयी सुबह देखा हो !
...
देखा तो एक कोने में कुछ यादें पड़ी थी
कुछ धूल की एक परत के नीचे दबी थी
और कुछ पर ज़न्ख लग गए थे
शायद आंसूं की नमी उससे खा गयी थी !!
आगे बढ़ी तो देखा
एक सुराही जिसमे छोड़ा था मैंने मीठा पानी
सूखा पड़ा था ,देख कर हुई हैरानी
शायद ग्रीष्म ऋतू की तपिश हर बूँद पी गयी थी !!
रजनीगंधा के सूखे फूल बिखरे पड़े थे
लगता था जिंदा रहने को शायद कोई जंग लड़े थे
हारे थे ज़रूर..... खुसबू और रंग.... !!
एक कोने में
सपनो का ढेर पड़ा था
कुछ उलझे से, कुछ सुलझे से
कुछ पे सवाल का चिन्ह अंकित हो गया था !!
सफाई अभियान इतना भी मुश्किल न था ,
बस,
यादों पर से धूल के परत हटाने थे
ज़न्ख लगे यादों को बाहर फेकने थे
सुराही में फिर मीठा जल भरना था
इस बार दिल को लाल गुलाब से सजाना था
उलझे सपनो को सुलझाना था
प्रश्न चिन्ह अंकित सपनो को हकीकत बनाना था
सहसा, मैं मुस्कुरा उठी
बस इतना ही  सहज था ज़िन्दगी सजाना :)

No comments:

Post a Comment