Friday 9 December 2011

बाबुल


तुने बाँहों का झूला झुलाया
ऊँगली पकड़ चलना सिखाया
अपने आँगन में लुक्का छिपी खिलाया
अपनी पलकों पे बिठाया

...बाबुल ,क्यों भेजे मुझे तू परदेश?
ना जाना मुझे पि के देश
सखी सहेलियों के संग
खेलूँ में होरी के रंग
सावन झूली तेरे अंगना
पहना था नया नया कंगना
चुनरिया थी मेरी धानी
करती थी में मनमानी

बाबुल ,क्यों भेजे मुझे तू परदेश ?
ना जाना मुझे पि के देश
आज बजती है यह शेहनाई
ना कर तू मेरी बिदाई
सिर्फ जनता है मेरा घूंघट
कैसे चोरुंगी तेरा चौखट
मंगल गीत सुनाई देती है
तुम्हे दुनिया बधाई देती है
पालकी बिठा भेज दोगे
तुम भी उदास बहुत होगे
तोह ,

बाबुल ,क्यों भेजे मुझे तू परदेश ?
ना जाना मुझे पि के देश

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