Friday 9 December 2011

बस चलना है

अधूरा है सफ़र
चलता हूँ शाम ओ सेहर
मंजिल बस एक हि
महबूब हि एक नज़र
सपना हैं तोह होसला भी होगा
हमसफ़र हैं तोह आसरा भी होगा
बेख़ौफ़ , कदम बढ़ाये चल
मंजिल है तोह रास्ता भी होगा

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