सांकरी पगडंडियों पे चलकर होता है एहसास
उस मिटटी का जो पैरों के नीचे रोंदी गयी है रास्ता बनाने को
एहसास है हवाओं में उन खुस्कियों का
जो बुझाने आई है यादों से अपनी प्यास
एहसास है झाड झुरमुट के सब्ज़ रंग का
जो कहती है लगाये रहो तुम ,बहारों की आस समय का ज्ञान नहीं, दूरियों का अनुमान नहीं
पहुचना है उस नगर ,लेकर ये डगर
जहाँ है मेरा एक छोटा सा घर ......
उस मिटटी का जो पैरों के नीचे रोंदी गयी है रास्ता बनाने को
एहसास है हवाओं में उन खुस्कियों का
जो बुझाने आई है यादों से अपनी प्यास
एहसास है झाड झुरमुट के सब्ज़ रंग का
जो कहती है लगाये रहो तुम ,बहारों की आस समय का ज्ञान नहीं, दूरियों का अनुमान नहीं
पहुचना है उस नगर ,लेकर ये डगर
जहाँ है मेरा एक छोटा सा घर ......
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