खाली खाली दुपहरिया
अमवा के पेड़ पे
कुहू- कुहू गाये कोयलिया
पुरवाई जो चले
झूले है धान की बालियाँ
पर क्यों मुरझाई पड़ी है
सजनी के मन की कलियाँ !!!
दूजा पहर है दिन का
आई है हौले से आँखों में निंदिया
पंखे की हवा लगे है धीमी
प्यार से उसके बालों को सहलाता है पुरवैय्या !!
दूर नदी सूखी पड़ी है
बारिश को न्योता गा रहा है खेवैय्या
प्यासा पपीहा भी पीहू पीहू कर
आज बन बैठा है गवैय्या
बुलाता पपीहा सावन को
तो सजनी कर श्रृगार क्यों ओढ़े है चुनरिया !!
सोचती है इस सावन
आ जायेगा उसका सांवरिया
फिर न रहेगी उसकी
खाली खाली दुपहरिया !!!
अमवा के पेड़ पे
कुहू- कुहू गाये कोयलिया
पुरवाई जो चले
झूले है धान की बालियाँ
पर क्यों मुरझाई पड़ी है
सजनी के मन की कलियाँ !!!
दूजा पहर है दिन का
आई है हौले से आँखों में निंदिया
पंखे की हवा लगे है धीमी
प्यार से उसके बालों को सहलाता है पुरवैय्या !!
दूर नदी सूखी पड़ी है
बारिश को न्योता गा रहा है खेवैय्या
प्यासा पपीहा भी पीहू पीहू कर
आज बन बैठा है गवैय्या
बुलाता पपीहा सावन को
तो सजनी कर श्रृगार क्यों ओढ़े है चुनरिया !!
सोचती है इस सावन
आ जायेगा उसका सांवरिया
फिर न रहेगी उसकी
खाली खाली दुपहरिया !!!
No comments:
Post a Comment