Friday 9 December 2011

Ajnabi

अजनबी ...कौन हो तुम ??
ना जानू तुम्हे ;
ना पहचानू तुम्हे .
क्यों दूर खड़े हस्ते हो ?
ना जाने कौन सि गली में बसते हो ?
गाते हो ,मुस्कुराते हो , सताते हो
बेवजह हि क्यों दिल लुभाते हो ?
क्यों पूछ रहे थे मेरे दिल का रास्ता
क्या है तुम्हारा मेरे दिल से वास्ता?
रात , चाँद सितारों कि बातें करते हो
क्या है बेकरारी ?क्यों आहें भरते हो ?
कभी समुन्दर कि लहरें बन जाते हो
साहिल से टकराते हो और लौट जाते हो
वफ़ा करते हो समुन्दर से तोह
साहिल को क्यों तद्पाते हो ?
बैठे है हम भी इस्सी किनारे
दो नयन मेरे इस सागर को निहारे
नापो ना इन् उन्चायिओं को
नापो ना इन् गहरायिओं को
देखूं में जो बैठ किनारे पर
मिलन यह जलधि और अम्बर का
आसमानी हो गया है अब रंग समंदर का
जाऊं में फिर वोह सावाल में खो ...
             ए अजनबी ...तुम कौन हो ?

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